hindisamay head


अ+ अ-

कविता

यह सन्नाटा

विश्वनाथ प्रसाद तिवारी


कैसे टूटेगा यह सन्नाटा
जो एक भयानक तूफान के बाद
हमारे चेहरों पर उतर आया है।
सुरंगों में घिर गए हैं सहयात्री
खामोश हो गई हैं मंदिरों की घंटियाँ
एक हाथी मरा पड़ा है न्यायालय के कठघरे में
बाहर कोई पत्ता तक नहीं हिलता।
केवल अँधेरा है
जो आहिस्ते-आहिस्ते
फैलता जा रहा है कमरे में
और बाहर रेतीले तट पर
जहाँ शिथिल हो गया है सागर
और हवाओं में चीखने की ताकत नहीं रह गई है।

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की रचनाएँ